मित्रों की जगह मेरे सर पर

हे गणपति देव!
चतुर्थी पर,
प्रणाम आपके चरणों में,
कृपा दृष्टि बनी रहे
प्रणाम आपके चरणों में,
मैं गिरा हुआ अज्ञानी हूँ,
सच्ची राह मुझे देना,
मेरी वाणी से कभी किसी को
ठेस न लगे यह वर देना।
मैं हट जाऊं उन राहों से
जिनसे मानवमात्र को
दुःख पहुँच रहा हो।
माफ़ी उन तक पहुंचा देना
यदि मुझसे कोई
दुःख पहुंचा हो।
जो भी कोई किसी तरह की
पीड़ा में हो,
उनकी पीड़ मिटा देना
उनको सारे सुख मिल जाएँ,
इस क्यारी में वे खिल जाएँ,
मित्रों की जगह मेरे सर पर
सम्मान सभी को दे पाऊं,
खुद मिट जाऊं, लेकिन
उनका सम्मान न मिठे यह कर पाऊं।
हे गणपति देव!
चतुर्थी पर,
प्रणाम आपके चरणों में,
कृपा दृष्टि बनी रहे
प्रणाम आपके चरणों में,

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