मुक्तक
मुक्तक
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मै मुर्गी खाऊ
वो पाप बताते हैं
वो कुकुरमुत्ता खाएं
गर्व से स्वाद बताते हैं
आगे से निकला पीछे से निकला
उसका ऐसा वैसा स्वाद बताते हैं,
शाकाहारी मांसाहारी कह करके
सुबह शाम भोग लगाकर सोते हैं,
अब कुछ भक्त अंधभक्त बोलेंगे
धर्म जाति के नाम पर रोयेंगे,
सच कहने ना सुनने की हिम्मत है
चीनी खाएं गुड़ में दोष दिखाएंगे,
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कवि-ऋषि कुमार ‘प्रभाकर’-
बहुत खूब
Nice
बहुत खूब
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां
सराहनीय रचना
व्यंगय के साथ पंक्तियों में सुंदर समाहार
बहुत सुंदर रचना