मुखौटा

इक मुखौटा है जिसे लगा कर रखता हूं
जमाने से खुद को छुपा कर रखता हूं

दुनिया को सच सुनने की आदत नहीं
सच्चाई को दिल में दबा कर रखता हूै

बस रोना आता है जमाने की सूरत देखकर
मगर झूठी हंसी चेहरे से सटा कर रखता हूं

आयेगी कभी तो जिंदगी लौट के मेरे पास
इंतजार में पलके बिछा कर रखता हूं

आज इक नया मुखौटा लगा कर आया हूं
मैं कई सारे मुखौटा बना कर रखता हूं

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