“मुझे राहत बन जाना हे”

उल्झे हुए रास्तो से, मुझे अंजाम तक जाना हे,
मंज़िल ना जाने कहा गुम हे, ना जाने किस राह गुज़र जाना हे..

मे थका हारा दर ब दर, पाओं मे भी चुभन सी हे,
हाल ए गरदिश का साया, सांसे भी अब सहम सी हे!

रुकना ठहरना अब बस मे नही, मुझे गरदिशो को पार लगाना हे,
करके समझौता पेरो के छालो से, खुद को रूहानी बेदाग बनाना हे..!

मेरे अहसास मेरे जज़्बात, करेगे तज़किरा इक दिन,
करुगा तज़किरा इक रोज़, मेरी मासूम सी ख्वाहिशो का.!

सफ़र बाकि हे मुश्किल भी, इलाही, सफ़र आसान बनाना हे….
मुश्किलो भरे इसे दोर मे “राहत”, मुझे राहत बन जाना हे !!!

all right reserved
*Rahat Haseen Khan*
(Haseen Ziddat)

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