मुस्कान में रहता हूँ
श्वेत कागज में
कलम घिसता हूँ,
इधर-उधर की
कहीं कुछ भी नहीं
जो है दिल में
उसे लिखता हूँ।
विजुगुप्सा से
दूर रहता हूँ
प्रेम के भाव बिकता हूँ।
मिट्टी में खेलते बच्चों की
सच्ची पहचान में रहता हूँ,
सड़क पर पत्थर तोड़ती
माँ के
आत्मसम्मान में रहता हूँ।
बुजुर्गों के सम्मान में और
युवाओं के अरमान में
रहता हूँ।
कवि हूँ हर किसी की
मुस्कान में रहता हूँ।
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Piyush Joshi - December 9, 2020, 10:56 pm
अप्रतिम कविता
Satish Pandey - December 26, 2020, 10:10 am
बहुत धन्यवाद
harish pandey - December 10, 2020, 9:45 am
बहुत सुंदर लाजवाब कविता
Satish Pandey - December 26, 2020, 10:10 am
सादर धन्यवाद
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - December 10, 2020, 9:50 am
अतिसुंदर भाव
Satish Pandey - December 26, 2020, 10:11 am
बहुत बहुत धन्यवाद
Chandra Pandey - December 10, 2020, 9:56 am
Nice very nice poem
Satish Pandey - December 26, 2020, 10:11 am
Thank you
Geeta kumari - December 10, 2020, 7:03 pm
Nice lines
Satish Pandey - December 26, 2020, 10:11 am
Thank you
Pragya Shukla - December 11, 2020, 10:57 pm
बहुत सुंदर
Satish Pandey - December 26, 2020, 10:11 am
बहुत बहुत धन्यवाद