मृग मरीचिका
वो छत क्या
अचानक गिर गई
गिरी नही
ऐसा कहो गिराई गई
नींव संवेदनहीनता की
रेत लालच की
ईंट भ्रष्टाचार की
सीमेंट बेईमानी का
माया का जाल बिछा
मूल्यों को तिजोरी में बंद
इंसानियत को दफना
निर्माण ……..
नहीं बस ढांचा खड़ा किया
जनता है तो मोल चुकता
करने को
जो चुकाती हैं कीमत
इन्सान होने की
एक सांस अधिक
ना ले पाओगे
फिर किस मृगमरीचिका
में गठरी बांध रहे हो
इस हादसे के बोझ के
गट्ठर को छोड़ ना पाओगे ।
सुधार के लिए सुझाव का स्वागत है।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
शुक्रिया जी
“नींव संवेदनहीनता की रेत लालच की
ईंट भ्रष्टाचार की सीमेंट बेईमानी का”
बहुत सही लिखा है अनु जी लालच और भ्रष्टाचार और बेईमानी यही सब मिलकर बनाई थी वह दीवार जिसमें मासूम लोग दब कर मर गए। बहुत ही सटीक चित्रण
बहुत बहुत आभार गीता जी
कवि अनु जी की कविता, यथार्थ की सच्ची अभिव्यक्ति है। काव्य के मानदंड पर खरी उतरती रचना है यह। मनुष्यता की पीड़ा की अनुगूंज इस कविता में सुनाई दे रही है। आज सर्वाधिक पतन इंसानियत का ही हुआ है। लालच की खातिर वह घटिया निर्माण करता है, जिससे मासूम लोग दब कर काल का ग्रास बन जाते हैं। यह कविता सच्चाई को प्रखर रूप से सामने लाने में सफल हुई है। बहुत खूब
बहुत बहुत आभार
समीक्षा के लिए धन्यवाद।