Categories: शेर-ओ-शायरी
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कोई बातों से भी मार देता है चंद सिक्कों की खातिर जो शायद हर किसी की जेब में पड़े रहते हैं मानुष जी।
बिल्कुल सर! पैसे को ज्यादा महत्व देते हैं लोग।
और निष्पक्ष आलोचना करने की वजह से शायद यहां कुछ लोग आपको गलत समझते हैं। माना मेहनत लगती है लेखनी में किंतु अगर कमी का पता चले तो आगे के लिए सुधार भी तो होता है
और आपका व्याकरण पक्ष बहुत ही बेहतरीन होता है, मैंने भी योजक चिह्न का प्रयोग करना शुरू कर दिया है।
धन्यवाद सर,
मैं तो सिर्फ यही कोशिश करता हूँ कि जो गलती मुझसे होती हैं वह किसी और से ना हों।
हर कवि मुझसे बेहतर हो।
कमियां तो मुझ में भी बहुत हैं। मैं तत्पर रहता हूं कि उन कमियों में सुधार ला सकूं। साथ ही अपने साथी कवियों को भी सूचित कर सकूं।
मेरी intention कभी किसी को नीचा दिखाने की नहीं होती।
जिसको जो समझना है समझो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता मैं अपना काम यूं ही निष्पक्ष तरीके से करता रहूंगा
कोई बात नहीं
आपने अच्छा लिखा है मानुष जी, कुछ लोग सोचते हैं हर बार चंद रूपये मेरी ही जेब में जाएँ, दुनिया ऐसी ही है, दूसरे को खुद से आगे देखकर परेशान हो उठते हैं, और अनाप- शनाप बातें कहने लगते हैं। व्यक्ति में ईर्ष्या है तो कवि नहीं है कवी है तो ईर्ष्या नहीं है।
कोई बात नहीं छोड़िए
बहुत ही सुंदर भाव