मेरी आँखों को ऐसी हँसी आ रही है
मेरी आँखों को ऐसी
हँसी आ रही है
जैसे मोमबत्ती जलकर
पिघलती जा रही है
कुछ जल गई रौशनी की फिक्र में
कुछ बेखबर-सी
पिघलती जा रही है
पिघल गई
धागे को जलाने के जश्न में
आधी जली तम मिटाने के लिए
आधी पिघलकर
खुदी में लिपटती जा रही है
नश्वर है
ये अंधेरा और रात का साया,
बता रही है ये और
मचलती जा रही है….
मोमबत्ती के पिघलने की दास्तान बयां करती हुई बहुत सुंदर कविता
कविता के भाव को समझने हेतु हार्दिक धन्यवाद दी
अतिसुंदर भाव
धन्यवाद
धन्यवाद
धन्यवाद