मेरे दीवाने कहाँ गए…?
गज़ल:- ❤❤ “मेरे दीवाने कहाँ गए” ❤❤
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मेरे ख्वाब सजाने वाले कहाँ गए?
मुझे जान-जान कहके बुलाने वाले कहाँ गए?
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जो कहते थे तुझ बिन जी ना पाऊंगा एक पल
मुझ पर मर मिटने वाले वो परवाने कहाँ गए?
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ढूंढते थे जो अपना नाम मेरे हाथ की लकीरों में
मुझे अपना महबूब बनाने वाले कहाँ गए?
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जिनकी मोहब्बत से ही थे दिन के उजाले,
मुझे अपनी रात बनाने वाले कहाँ गए?
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खड़े रहते थे तपती धूप में दीदार को मेरे
मेरी इक झलक पर ईद मनाने वाले कहाँ गए?
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बूढ़े बरगद के नीचे करते थे जो शरारत
मेरे दिल पर बिजली गिराने वाले कहाँ गए?
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मेरी राह के काँटे बीन लेते थे जो
मेरी राह में फूल बिछाने वाले कहाँ गए?
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सावन में भीगने से हो जाती थी जिनको सर्दी
मेरी जुल्फों की बारिशों में नहाने वाले कहाँ गए?
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मार खाये थे जो मेरे भाई से एक दिन
ऐसे थे जो मेरे दीवाने कहाँ गए?
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मर मिटे थे जो मेरी एक हँसी पर
मेरे दामन में खुशियाँ सजाने वाले कहाँ गए?
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सजाती थी जिसके नाम की बेंदी माथे पर
मुझे अपनी दुल्हन बनाने वाले कहाँ गए?
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मेरी गलियों में जिनका था ना जाना
मेरी खिड़कियों पर टकटकी लगाने वाले कहाँ गए?
बहुत खूब, बहुत सुंदर
धन्यवाद आपका बहुत बहुत
बहुत सुंदर प्रज्ञा जी
आभार आपका हौसला अफजाई के लिए
बहुत सुंदर
🙏🙏
बहुत सुंदर
धन्यवाद
waah waah bahut khub lajawab
बहुत बहुत आभार
umdaa lekhan
काबिल- ए–तारीफ
🙏🙏
🙏🙏🙏💐
एक एक शब्द उम्दा और नायिका की तड़प का अनुभव करा रहा है
🙏🙏
धन्यवाद
धन्यवाद आपका
बेहद खूबसूरत रचना,
शिल्प पुष्ट
थैंक्स
👏👏👏🙏🙏🙏
बहुत सुंदर