मेरे मालिक, मैं तेरा गुलाम हूँ ।।2।।
दुख की बदली छाई है मेरे सर पे
सुख की चाह करता नहीं रब मैं तुम से
तु चाहे जैसे रख ले, अपनी शरण में
मैं वैसे रह लूँ, तेरी शरण में
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मेरे मालिक, मैं तेरा गुलाम हूँ ।।1।।
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तेरी मर्जी के आगे संसारी का कुछ चलता नहीं
तेरे भक्त तेरी माया से विचलित कभी होता नहीं
तु सुख दे या दुख दे, स्वीकार है हमे
मेरे मालिक अपने चरणों का दास बना ले हमें
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मेरे मालिक, मैं तेरा गुलाम हूँ ।।2।।
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भक्त-मालिक के बीच, नाता हो ऐसा
जैसा परमारथ के कारण संत सहते हैं पीड़ा
सुख-दुख की परवाह ना हो मेरे मालिक
मैं तुझमें सदा बसा रहूँ,
यहीं विनती बारम्बार हैं मुझे तुझसे मेरे मालिक ।।3।।
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मेरे मालिक, मैं तेरा गुलाम हूँ ।।2।।
जय श्री सीताराम
दुख की बदली छाई है मेरे सर पे
सुख की चाह करता नहीं रब मैं तुम से
तु चाहे जैसे रख ले, अपनी शरण में
________ प्रभु की आराधना करती हुई और प्रभु की शरण में स्वयं को रखते हुए कवि विकास जी की अति उत्तम रचना
सुंदर