मेरे लफ्ज़
कैसे और किससे करें
हम जिक्र ए गम,
लफ़्ज दबे बैठे हैं,
उनको भी है ये भ्रम।।
सुनने को कोई उनको
शायद ही यहां रुकेगा,
कोई तो सुनके उनको
फिर से अनसुना करेगा।।
लफ्ज़ आ रहें जुबां पर,
कहने दास्तां ए गम
फिर दुबक रहे दिल में
कि कोई पढ़ लेे यें आंखे नम।।
इंतहा मेरे लफ़्ज़ों की
मेरे गम यूं ना देख,
देख जख्मी दिल को मेरे
ये झुठी मुस्कराहट तू ना देख।।
तोड़कर हर बंदिश को मेरी
तब लफ्ज़ कहेंगे ये गम,
दास्तां को यूं बयां करने में
जब शब्द पड़ने लगेंगे मेरे कम।।
वाह वाह बहुत खूब
आपके प्यार के लिए धन्यवाद सर।
सावन पर ये मेरी पहली रचना है।
लफ्जों का मानवीकरण किया गया है।
उत्तम शब्दावली
धन्यवाद सर
अरे वाह! फिर तो आपका स्वागत है सावन के कवि परिवार में और एक बार फिर से इतनी सुंदर कविता लिखने के लिए तथा हमारे बीच आने के लिए आपका धन्यवाद।
उम्मीद है आप जल्द ही नई रचना लेकर हमारे समझ प्रस्तुत होंगे
सुन्दर और सटीक शब्दों का प्रयोग।
वाक्यांश में पूर्ण सौष्ठव। दिमाग की बत्ती जलाने वाली कविता।
सुन्दर प्रयास। हार्दिक स्वागत।
बधाई हो आपको शास्त्री जी 🏅🏆🎖👏👏
बहुत बहुत धन्यवाद व आभार प्यारे
कवि का दर्द बहुत ही गहरा है जिसको बयां करना बड़ा मुश्किल लग रहा है
बेहतरीन प्रस्तुति
कवि की भावनाओं की खूबसूरत प्रस्तुति
सर सलाम करता हूँ
🙏🙏🙏🙏🙏
जहाँ न पहले रवि
वहाँ पहले कवि 💐🙏🙏🙏
प्रणाम सर,