“मेरे वाचन में हो सच्चाई”
मेरे वाचन में हो सच्चाई
व्यक्तित्व में हो अच्छाई
हे देव ! मुझे ऐसा वर दो
मुझको मानवता दे दिखलाई
ना कभी किसी का दिल तोड़ूं
किसी पर आई आंच को सिर ले लूं
जब बोलूं सदा ही सच बोलूं
पशुओं की पशुता को छोंड़ूं
हर ओर बिखेरूं मैं खुशियाँ
रंगो से भरी हो यह दुनिया
सद्कर्म करूं और मन तोलूं
ना कभी किसी का घर तोड़ूं
हे देव ! महेश, ब्रह्मा, विष्णु
मैं मोक्ष प्राप्त कर तुझमें मिलूं….
मेरे वाचन में हो सच्चाई
व्यक्तित्व में हो अच्छाई
हे देव ! मुझे ऐसा वर दो
मुझको मानवता दे दिखलाई
ना कभी किसी का दिल तोड़ूं
किसी पर आई आंच को सिर ले लूं..
आपकी यह कविता पढ़कर आपकी हृदय की गहराई का पता चलता है
जिसमें सबके लिए स्नेह भरा है
सुंदर वरदान मागती कवि प्रज्ञा जी रचना
धन्यवाद
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
धन्यवाद
मेरे वाचन में हो सच्चाई
व्यक्तित्व में हो अच्छाई
_______ कवि,,,प्रज्ञा जी की बहुत सुंदर रचना ,सुंदर अभिव्यक्ति
धन्यवाद
लाजवाब रचना है
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