मैं आखिरी मुहब्बत का दस्तक दे रहा हूँ
मैं आखिरी मुहब्बत का दस्तक दे रहा हूँ ।
और वो गैर की बाहों में सोई जा रही है ।
मैं वफा की डोर में बंधा हूँ ।
और अब वह वेवफा की रश्में निभा रही है ।।1।।
मैं आखिरी मुहब्बत का …… …….. …. … (1)
इजहारे मुहब्बत की वो दिन बस ख्वाब बन रही है ।
टूट के रिश्ते अब समंदर की गहराई माप रही है ।
वेवफा नहीं है अगर वो तो क्या मेरे साथ वो वफा निभा रही है ।
तोड़ के रिश्ते अब वो गैर की शहनाई बजा रही है ।।2।।
मैं आखिरी मुहब्बत का …. …. …. (2)
सोचता हूँ कि मैं इतना क्यूँ वेवफा से वफा कर रहा हूँ ।
मुकद्दर को भूल अपनी तेरे संग जिन्दगी जी रहा हूँ ।
तेरा क्या है ओ वेवफा, तु तो है हरजाई हर किसी का ।
मैं अपनी किस्मत पे पत्थर मार रहा हूँ ।।3।।
मैं आखिरी का दस्तक … .. (3)
कवि विकास कुमार
वाह-वाह
बहुत खूब
भकलोली मत करो यार
सही बात है।