मैं चाँद निचोड़ के लाया हूँ…
पलकों पर सजे थे सपनें
मैं थी नींद के आगोश में,
वो आया सपनों में मेरे
बोला मुझसे हौले से;
पी लो रानी! प्रेम का प्याला
मैं चाँद निचोड़ के लाया हूँ
तेरी खातिर आसमान से
तारे भी ले आया हूँ
मांग सजा दूं आ तेरी
मैं रंगीन सितारों से
तेरे आँचल में रख दूं
तोड़ के फूल बहारों से
रजनीगन्धा महकेगा
नित तेरी जुल्फों में
यह कहकर वो अदृश्य हो गया
मेरी सोई पलकों में,
जब खोली आँखें मैंने
अश्क जमे थे अलकों में……
अति सुन्दर कल्पना है प्रज्ञा जी की ,”पी लो रानी! प्रेम का प्याला
मैं चाँद निचोड़ के लाया हूँ”,वाह सुन्दरता और प्रेम की पराकाष्ठा ! लाजवाब..
बहुत बहुत धन्यवाद गीता जी भाव समझने के लिए एवं सुंदर समीक्षा के लिए
अतिसुंदर भाव
पी लो रानी! प्रेम का प्याला
मैं चाँद निचोड़ के लाया हूँ
अति सुन्दर पंक्ति Pragya ji
सुन्दर