
मैं बेटी हूँ
मैं बेटी हूँ
फिर भी मैं अकेली हूँ
मैं सबकुछ नहीं कर सकती
क्योंकि मैं बंधन में बंधी हूँ
किसी को मैं पसंद नहीं तो
कोख में ही मार दी जाती हूँ
गर में किसी को पसंद हूँ तो
मैं उसको नहीं पाती हूँ
रब ने मुझे बनाया
दुनियां को यह दिखाया
मेरे बिन संसार अधूरा है
ये जानते हुए भी
दुनियां ने मुझे नकारा है
जिस घर में मैं आई
खुशियों की सौग़ात लाई
बापू की ऊँगली पकड़ के
दुनियां की राह पाई
माँ ने मुझे सिखाया
जीवन का पाठ पढ़ाया
जब घर से मैं विदा होइ
बचपन की खुशियाँ खोई
किसी ने मुझे दुलारा
किसी ने मुझे दुत्कारा
जीवन में मैंने पाया
संसार है निराला
कहीं क़दम बढ़ा के चली
तो, कहीं बन्दिनी बन के रोइ
किया नाम मैंने रोशन
बंधनों के बीच रह कर
कहीं मुझे नहीं चाहा तो
खाती रही मैं ठोकर
फिर भी मैं बेटी हूँ
मैं वो हूँ
जो हर अवरोध में
कहां मैं नहीं हूँ।
— सीमा राठी
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देव कुमार - January 31, 2017, 11:58 am
Bahut Khoob Seema Ji
सीमा राठी - January 31, 2017, 12:39 pm
dhanyabaad
देव कुमार - January 31, 2017, 12:43 pm
Swagatam Seema Ji
महेश गुप्ता जौनपुरी - September 9, 2019, 7:34 pm
वाह बहुत सुंदर रचना ढेरों बधाइयां