मैं हूं किसान
मैं हूं किसान,
आप सा ही एक इन्सान
मेहनत से अपनी,
बीज बोता हूं ज़मीं में,
सींचता रहता हूं पौधे
अपनी आंखों की नमी से
देखी है बागों की बहारें,
मेहनत से हम कभी ना हारे
निज मेहनत का सदा देता ही आया,
बंजर धरती पर फसल उगाया
आज ज़रा सा मांग लिया तो,
क्यूं पेट भरों को गुस्सा आया
मैं झेलूं मौसम की मार,
मुझसे यूं ना खाओ खार
मैं सचमुच ही परेशान हूं,
जी हां मैं किसान हूं….
______✍️गीता
क्या बात है
किसानों पर बहुत सुंदर कविता
सराहना हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद प्रज्ञा जी
देश के अन्न दाताओं ,के बारे में बहुत सुंदर और सच्ची कविता अद्भुत लेखन
किसानों की स्थिति का सटीक चित्रण प्रस्तुत करती हुई बहुत सुंदर कविता
अतिसुंदर
सादर धन्यवाद भाई जी 🙏