यदि मैं कवयित्री होती…!!
चंद्रोदय मुझसे कह रहा:-
कविता लिखने की बात,
मैं कविता के मामले में हूँ
ठनठन गोपाल.
हूँ ठनठन गोपाल
ना आती कविता मुझको
फिर भी सब कहते हैं
क्यों कवयित्री मुझको !
कवयित्री यदि होती तो
अविरल कलम चलाती
अपने मन की पीर ना
सबको कभी बताती
लिखती समाज की बात और
राजनीति की दाल गलाती
बनकर टीपटाप’ लपेटे में नेताजी’ में जाती
हर दिन करती अपने काव्य से
साहित्य की मैं तो सेवा
कुमार विश्वास की तरह
कवि सम्मेलन में जाती.
यदि मैं कवयित्री होती तो
दिनकर हर रात उगाती….
बहुत सुंदर
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बहुत खूब
चंद्रोदय मुझसे कह रहा:-
कविता लिखने की बात,
मैं कविता के मामले में हूँ
ठनठन गोपाल.
हूँ ठनठन गोपाल
ना आती कविता मुझको
फिर भी सब कहते हैं
क्यों कवयित्री मुझको !
अपने आपको निम्न दिखाना हर किसी के
बसकी बात नही..
सब तो अपनी तारीफ खुद ही कर लेते हैं
आपमें वह गुण है कि आप अपनी प्रसंशा ना करके
खुद को निम्न दिखाती हैं
सुंदर अभिव्यंजना
आपने कहावतों का उपयोग करके
कविता को उच्चकोटि का बना दिया है
वाह वाह …!!