यश
यूं ही नहीं मिलता किसी का साथ
ये तो जन्मों जन्मों की अधूरी आश
खेल कूद कर संगी साथी के संग
खबर न हुई कब बड़े हो गए
कीमती उनकी यादों के तार ने
सूने पल के गुजरने का सहारा बने
वक्त के साथ यादों पर धूल जमी
कभी हमी हतास कभी उनकी कमी
भूल कर प्रीत को जब आगे बढ़े
खूबसूरत अहसास थे पर में पड़े
साथ बचपन की महक थी कहीं दबी
दूब को नमी मिलते ही वो चल पड़ी
मीठी सी आस है फिर तेरी प्यास है
शैशव में थे अकेले अब पूरी बारात है
फिर है मौका तेरे बचपन में जाने का
यादों के आंगन को फिर से जिलाने का
यश है तूं सभी के लिए ही जीना तेरा
तेरे खुशबू से है महका सूना मन मेरा
बचपन को याद करती हुई बहुत उम्दा रचना, सुन्दर प्रस्तुति
बचपन की अमूल्य यादों को समर्पित रचना