याद रहे
पार्थ!
तुम भटक रहे हो क्या?
उस धर्म के मार्ग से
जिस मार्ग का अनुसरण करने का पाठ
आप पढ़ाते रहे हैं
वनवास के समय अपने प्रवचनों में …
वो रण वांकुरे, जिन्होंने
तुम्हारा वनवास मिटाने और
तुम्हें सत्ता तक पहुँचाने के रण को
लड़ा है धर्म युद्ध समझ
थोड़ा विस्मित है
आता देख सुन
तेरा नाम सत्ता के षडयंत्रो में …
तुम्हें सिर्फ याद रखनी होगी
वो मछली की आंख
जिसकी केंद्र में थी परिकल्पना
एक सक्षम, समर्थ, समृद्ध राष्ट्र की
सबका साथ सबका विकास की
याद रहे!
भूला दिये जाते रहे है
अक्सर, खुद की इमेज चमकाने वाले
सिर्फ देश चमकाने वालों को ही
लिखता है इतिहास स्वर्ण अक्षरों में …
~राजू पाण्डेय
बगोटी (चम्पावत)
बहुत शानदार
बहुत सुंदर
बेहतरीन
बहुत ही बढ़िया
वनवास के विषय में कवि ने अपने भाव को सुंदरता से व्यक्त किया है
अच्छी रचना