ये कैसा कलयुग आया है ???
हे राम तुम्हारी दुनिया में
ये कैसा कलयुग आया है…!!
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कहीं जल रहे दीप तो देखो
कहीं अंधेरा छाया है
हे राम ! तुम्हारी दुनिया में
ये कैसा कलयुग आया है…!!
तज रहे प्राण मानव देखो
कटते जाते जंगल देखो
बेघर होते पक्षी देखो
सड़कों पर रोते बच्चे देखो
देखो तुम मरते किसान को
जीवित तुम रावण देखो
बोया था तुमने जो बीज कभी
उसमें फल देखो कैसा आया है ?
हे राम ! तुम्हारी दुनिया में
ये कैसा कलयुग आया है…!!
सड़कों पर लुटती सीता देखो
घर-घर में बैठा विभीषण देखो
देखो तुम कपटी शकुनी को
मन्दिर में बैठा ढोंगी देखो
मानव तो हे केशव ! अब तो
दानवता पर उतर आया है
हे राम ! तुम्हारी दुनिया में
ये कैसा कलयुग आया है…???
काव्यगत सौंदर्य एवं विशेषताएं:-
यह कविता मैंने किसानों पर हो रहे अत्याचार और नारियों के प्रति निम्न दृष्टिकोंण रखने वालों के ऊपर आक्रोश में लिखी है….
अच्छे दिन आने वाले हैं का नारा लगाने वालों के नेत्रों को खोलने के लिए व्यंगात्मक शैली में लिखी है…
शब्द तथा भावों के तारतम्य को बनाए रखने का पूरा प्रयास किया है एवं पाठक की मानसिकता को ध्यान में रखते हुए लिखा है जिससे उसे यह कविता पढ़ने में कोई कठिनाई ना महसूस हो और अंत तक उसकी जिज्ञासा बनी रहे…
उम्मीद है यह कविता समाज की कुत्सित सोंच को बदलने में सहायक होगी…
वर्तमान की दुविधाएं और परिस्थितियों का बखूबी वर्णन करती हुई प्रज्ञा जी की बहुत सुन्दर रचना है । इस घोर कलयुग मे श्री राम को याद करती हुई सुंदर कथ्य और शिल्प के साथ बहुत भाव पूर्ण कविता
धन्यवाद आपका
राम राज्य में राम जैसे दया निधान थे परंतु कलयुग में तो हर तरफ रावण की रावण है पहले हम स्वयं राम बने फिर राम राज भी आएगा ऐसा मेरा मानना है
जी बिल्कुल परंतु
यदि हम एक इंसान भी बन जाए और मानवीय गुण दिखाएं तो भी समाज का कल्याण हो जाएगा
बहुत खूब
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