ये कैसा दौर है
ये कैसा दौर है जहाँ
विश्वास का भी कारोवार है
हैसियत का पता नहीं पर
पहुंचने पर बनता कर्जदार है
एक समय था सबसे ज्यादा भरोसा
डॉक्टर पर ही होता था
भगवान से भी कहीं
पहले स्थान उसका होता था
अब तो वो ही सबसे ज्यादा
लोगों को क़तर रहे
हर दिन ही इंसान के निगाहों में
शूल से हैं चुभ रहे
उम्र सब की लगभग इतनी
फिर भी इतना लालच हैं क्यों
इंसान अपनी आदतों का
ऐसे शिकार हुआ हैं क्यों
पैसे की भूख ऐसी इतनी
किसी भी युग में न थी
व्यवसाय के लिए भी
उतनी आवश्यक वस्तु न थी
मुफ्त न मिले सब कुछ
श्रम तो लगता ही हैं
पर किसी वस्तु की कीमत
का कोई सीमा रहता हैं
बहुत ही सुन्दर भाव है।
सुंदर यथार्थ
सुंदर भाव
अति उत्तम प्रस्तुति
अतिसुंदर रचना
यथार्थ चित्रण किया है, आपने बहुत सुंदर सृजन सर🙏🙏