ये कैसी मानव जाति है
अच्छाईं भाती है फिर भी
जुबां गलत बोल जाती है
ये कैसी मानव जाति है
सामान तो हरदम है पास
जब हो कुछ बहुत खास
तभी तो जरूरत आती है
अंतर तो सर झुकाता है
बाहर कुछ और दिखाता है
सरलता को क्यूं छुपाती है
आसमान पे थूकने को आमादा है
अपना काम पड़ा रह जाता है
फिर गुस्सा औरों पे दिखाती है
समय जैसे ख़ुद का गुलाम हो
जरूरी काम कल पर टाल दो
ब्यर्थ औरों पे झल्लाती है
हर आरंभ का है अंत यहां
आराम से मन ऊबता कहां
जमे तन से अब चिल्लाती है
मानव जाति के मनोभावों को व्यक्त करती हुई बहुत सुंदर रचना
अतिसुंदर भाव
Nice
सॉइकोलॉजिकल फैक्ट है सर…
मानव विभिन्न मानवी आचरण करता है..एक व्यक्ति के अलग-अलग
चेहरे एवं व्यवहार में समयानुकूल परिवर्तन देखा जाता है क्योंकि
मानव का व्यवहार संवेगों से नियन्त्रित होता है जो संवेग प्रबल मानव व्यवहार भी वैसा ही करता है…