ये कैसी है रीति ये कैसी है नीति?
ये कैसी है रीति ये कैसी है नीति? निज राष्ट्र की जनता भूख से हैं मरती ।
ये अन्न स्वयं उगाती फिर भी ये अन्न को क्यूँ तरसती?
ये कर भी देती राष्ट्र को फिर भी ये राष्ट्र शसक्त क्यूँ नहीं बनती?
ये कैसी है रीति ये कैसी है नीति? निज राष्ट्र की दुर्दशा अब मुझसे देखी नहीं जाती ।।1।।
चारों तरफ भ्रष्टाचार-ही-भ्रष्टाचार अब देखने को मिलती ।
शांति कहाँ खो गई निज राष्ट्र की अब पता ही नहीं चलती ।
जाति-मज़हब-धर्म के नाम पे हर दिन लड़ते आज भारतवासी ।
अंग्रेजों की एक नीति हैं सबसे पुरानी, फूट डालो और राज करो ।
यहीं हो चुकी है, आज हमारी राजनीति ।।2।।
जब-तक पालन करेंगे हम विदेशी नीति, तब-तक उत्थान नहीं होगा हमारी स्वदेशी ।
स्वतंत्र होने के बाद भी हम अपने राष्ट्र में बिट्रीस व्यवस्था अपनाते ।
हम अपनी सुव्यवस्था व सादगी को भूलाके गैरों की कुव्यवस्था को क्यूँ अपनाते?
जिस देश ने अपनी संस्कृति गँवाई,समझो वह देश अपना सर्वस्व लुटाई।
ये कैसी है रीति ये कैसी है नीति, निज राष्ट्र की दुर्दशा अब मुझसे देखी नहीं जाती ।।3।।
समझो भारतवासी तुम एक दिन मिट जाओगे,जरा-सी भूल के कारण तुम गैरों में खो जाओगे ।
अपनी संस्कृति को अपमान करोगे, पर संस्कृति में खुश रहोगे तुम ।
एक जरा-सी भूल के कारण निज राष्ट्र की सारी मर्यादा को को तुम क्षण-भर में गँवाओगे ।।4।।
समझो भारतवासी तुम, कुछ तो ख्याल रखो निज धरती की ।
पूर्ण नहीं अपना सकते अगर तो आध अपनाओ अपनी संस्कृति को ।
अगर आध में भी कठिनाई है तो तनिक (कुछ) अपनाओ अपनी संस्कृति को ।
अगर तनिक (कुछ) में भी दुविधा है तो डूब मरो परदेशों में ।।5।।
कवि विकास कुमार
👏👏
मैं आपके पुत्र के जैसा हूँ, हमे आशीर्वाद दीजिये । मेरे लिए ये बड़ी बात होगी ।।
विकास जी आपकी उम्र क्या है?
मैं आपकी बहन हो सकती हूँ माँ नहीं, हो सकता है आप मुझसे बड़े ही हों।
मेरा आशीर्वाद आपके साथ है।
पर उम्र बताईये अपनी।
मैं आपकी माँ किस ऐंगिल से हूँ, और अपनी
date of birth बतायें।
मैं सावन पर कवयित्री बनने आई थी किसी की माँ नहीं।
सोच समझकर बोला कीजिए
माना आपकी आँखें कमजोर हैं
पर इतनी भी नहीं होंगी।
मुझे फ़ालतू की बातें बिल्कुल पसंद नहीं हैं।
ये कर भी देती राष्ट्र को फिर भी ये राष्ट्र शसक्त क्यूँ नहीं बनती
राष्ट्र सशक्त क्यों नहीं बनती
राष्ट्र में बनती कैसे लग रहा है विकास जी
सर जी अगर कोई गलती दिखें तो जरूर बताय । सादर आाभार ।।
विकास जी आप जब भी इस मंच पर आए ! अर्थात जब भी ये टिप्पणी पढ़ें। आप अपनी गलती को स्वीकार करें और प्रज्ञा जी से माफी मांगे।
क्योंकि आपको ऐसा नहीं बोलना चाहिए था, हो सकता है आपने अपने से कुछ ज्यादा ही उम्र सोचकर कहा हो ,मगर गलती तो हुईं है ही ।
और हमें हमेशा व्यक्तिगत और व्यावसायिकता के अनुरूप ही भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
जो अपनी गलती को सुधार ले या गलती को मान लें वही सही अर्थों में इंसान हैं
इसलिए आप अच्छे कवि बनने से पहले अच्छा इंसान बने और माफी मांग लें।
और रही बात आपकी कविता की आपके भाव बहुत अच्छे होते हैं मगर शब्द धोखा दे देते हैं शायद आपको टाइपिंग करने में परेशानी हैं फिर भी प्रयास करते रहिएगा
धन्यवाद
आप हम क्षमा कर दीजिये । हमसे जघन्य पाप हो गया है । जय राम जी की ।।
आप मुझसे सम्पर्क करे
8076809852
श्रीराम को 5.00बजे से 7.00बजे तक
मैं पूरी कोशिश करूंगा जितना मेरे पास ज्ञान है उसके अनुरूप आपकी भाषागत त्रुटियों को सुधारने के लिए
जय श्री राम 🙏🙏