ये गुनगुनाहट कहाँ हुई है
ये गुनगुनाहट कहाँ हुई है
जो लेखनी ने बयान की है,
जो ध्वनि सुनी थी कभी मुहोब्बत की
आज फिर से सुनाई दी है।
निगाहों से मिलने को निगाहें
पलक झपकते मिला ही दी हैं।
सुहाना मौसम सुहाने पल-क्षण,
ये आहटें सी सुनाई दी हैं।
कभी हैं खट्टे फलों सी खुशबू
कभी वे लगती मिठाई सी हैं।
जो कह रहे हैं वो कुछ नहीं है
असल की बातें छुपाई सी हैं।
बयां न कर पाये थे मुहब्बत
मगर जिगर में सजाई सी हैं।
वाह बहुत ही सुन्दर कविता, उत्तम प्रस्तुति।
वाह वाह पाण्डेय जी
ये गुनगुनाहट कहाँ हुई है
जो लेखनी ने बयान की है…….
******* कवि के कोमल हृदय की खूबसूरत भावनाओं को दर्शाती हुई बेहद खूबसूरत रचना, लाजवाब अभिव्यक्ति, सुन्दर शिल्प और शानदार प्रस्तुति
बहुत खूब अति सुन्दर कविता
बहुत सुंदर
ये गुनगुनाहट कहाँ हुई है
जो लेखनी ने बयान की है,
जो ध्वनि सुनी थी कभी मुहोब्बत की
आज फिर से सुनाई दी है।
निगाहों से मिलने को निगाहें
पलक झपकते मिला ही दी हैं।
सुहाना मौसम सुहाने पल-क्षणकवि ने इस कविता को बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है शानदार प्रस्तुति बहुत उमदा लेखन