ये जिंदगी
ये जिंदगी भी कैसे करवट बदलती है ।
इस करवट खुशी, दूसरे गम मिलती है।
रेत की मानिंद हो गई हसरतें सारी,
जितना समेटो, मुठ्ठी से फिसलती है।
जमीं छोड़ा आसमां छूने की ख्वाहिश में,
जमीं पर ही ला औंधे मुँह पटकती है ।
भीड़ में उँगली छूटे बच्चे सी जिंदगी,
गिरते पड़ते भी अब नहीं संभलती है ।
राजा से फकीर पल में बना दे,
जिंदगी भी कैसे कैसे खेल खेलती है ।
नहीं पास कोई, आज हालात ऐसे हैं,
हर निगाहें मुझसे बच निकलती है।
जो थकते ना थे ‘देव’ नाम लेते हमारा,
आज वो जुबां खिलाफ जहर उगलती है ।
देवेश साखरे ‘देव’
bahut khhob
Thanks
Nice
Thanks
Nice
Thanks
Nice
Thanks
Sunder
धन्यवाद
वाह
धन्यवाद
बहुत खूब