Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
मां तूं दुनिया मेरी
हरदम शिकायत तूं मुझे माना करती कहां निमकी-खोरमा छिपा के रखती कहां भाई से ही स्नेह मन में तेरे यहां रह के भी तूं रहती…
भटके हुए रंगों की होली
आज होली जल रही है मानवता के ढेर में। जनमानस भी भड़क रहा नासमझी के फेर में, हरे लाल पीले की अनजानी सी दौड़ है।…
हुड़दंग करेगे होली में
फिर आज गुलालों के खातिर बदरंग बनेगे होली में । अंग अंग पर रंग सजा हुड़दंग करेगे होली में ।। न जानेगे कितने रंग नये…
रात तूं कहां रह जाती
अकसर ये ख्याल उठते जेहन में रात तूं किधर ठहर जाती पलक बिछाए दिवस तेरे लिए तूं इतनी देर से क्यूं आती।। थक गये सब…
रंग भरी है जिन्दगी, रंगों में रह मस्त,
कष्ट से भी खोज खुशी, कभी न होगा पस्त,
************वाह सर होली के आने से पूर्व ही होली की कविता,सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाने की सुंदर सलाह देती हुई कवि सतीश जी की बहुत सुंदर छंद बद्ध रचना
वाह रंग उमंग
अंतिम 2 पंक्तियां बहुत ही खूबसूरत थी
होली के त्यौहार पर बहुत सुंदर छंद वाली कविता पाण्डेय जी, बहुत खूब