रख लो ना इसे काम पर
एक छोटे से ढाबे के बाहर
खड़ी होकर वो गुहार कर रही थी,
रख लो ना इसे काम पर,
ग्यारह बरस का हो गया है यह,
माँज लेगा चाय के गिलास,
धो देगा जूठे बर्तन
झाड़ू लगा देगा,
मेज पर कपड़ा मार देगा।
और भी छोटे -छोटे काम कर देगा,
जो कहोगे कर लेगा।
तीस रुपये रोज भी इसे
दे दोगे तो चलेगा,
एक किलो आटा आ जायेगा,
इस ठंड में
पूरे परिवार का पेट भर जायेगा।
रख लो ना इसे,
आपका भला होगा।
एक उसके गोद में
दूसरा ग्यारह बरस के बच्चे की
गोद में था।
ठंड में तन ढकने को
फटे वसन लटक रहे थे,
बोलते बोलते लफ्ज अटक रहे थे।
ढाबे का मालिक
बालश्रम कानून से डर रहा था,
एक गरीब परिवार
रोजगार की गुहार कर रहा था।
बाल मजदूरी तथा गरीबी पर बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति
अक्सर ऐसा देखने को मिल जाता है लोगों की बेबसी को देखकर मन द्रवित हो उठता है
जबरदस्त रचना
शानदार रचना
Nice poem
कमाल अभिव्यक्ति
विचारणीय विषय
बहुत सुंदर