रमजान आया है…

हमसे करो वफा
कि अब वो वक्त आया है
चांद की ओढ़नी ढक कर
मेरा महबूब आया है
है दिन बीत ना कुछ खाया
रहा प्यासा ही पूरा दिन
कि अब रमजा़न आया है
तुम्हारी सूरत दिखी जिस दिन
समझ लूंगा उसी दिन ईद
जुल्फों की ओट में छिपकर
ऐ प्रज्ञा! मेरा चांद आया है….

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