रे मन ! तू परोपकार कर
रे मन ! तू परोपकार कर
निज तन की तू थोड़ चाकरी
मानवता कर
रे मन ! तू परोपकार कर
अपने दु:ख को थोंड़
मनुष की सेवा तू कर
रे मन ! तू परोपकार कर
तृष्णा की चांह नहीं कर
सबसे प्रेम करे जा
ईष्या से ऊपर आकर
तू प्रेम किये जा
रे मन ! लिख ऐसा
जिससे भला हो जग का
भोगी का भी जोग जगे
कल्याण हो जग का..
बहुत सुंदर
BAHOOT Sundar