रोती धरती चिखता अम्बर, सारा जहां है सोता-सा ।
रोती धरती चिखता अम्बर, सारा जहां है सोता-सा ।
आज भी धरती रोती अपने पुत्रों के इच्छाओं पे ।
मारुत भी आज दुषित हो चुका है, मानव के व्यवहारों से ।
मानव अब मानव बनने को तैयार नहीं, अब तो यह दानव पथ पे अग्रसर है ।।1।।
शुद्धता खो चुकी है जल मानव जैसे दानवों के व्यवहारों से ।
मानव आज अपनी मानवता से गिर चुकी है, अब वह दानव बनने पे अड़े है ।
प्रकृति को विनाश करने में नर का प्रथम हाथ है ।
जो नर नारायण की सम्पदा को न बचा सके, उसका मानव-जन्म बेकार है ।।2।।
मिट्टी, जल, अग्नि, अम्बर, हवा से बना यह तन का अधम शरीर है ।
और यदि नर इसे ही बर्बाद करने पे अड़े है, तो क्या यह उसूल उचित है?
जो मानव अपनी प्राकृति न बचा सकें उसका नर धिक्कार कहना है ।
रोती धरती चिखता अम्बर, सारा जहां है सोता-सा ।।3।।
विकास कुमार
Waah
Vartni jaanch len
जी हाँ जरूर ।।
चिखता नहीं ,चीख़ता
अगर आप अहिंदी भाषी हैं तो उसी भाषा में लिखें जो आपकी मुँहबोली हो। पर शुद्ध
हिन्दी को सही रूप में लिखिए विकास जी, ऐसे तो हिंदी विकृत हो जायेगी, ऐसा मत कीजिये , ये जो आप लिख रहे हैं यह कविता है ही नहीं। साथ में आप वर्तनी भी काफी गलत लिख रहे हैं। यदि आप हिन्दी भाषी नहीं हैं तो उस बोली में लिखिए जिसे आप जानते हैं। हिंदी के साथ ऐसा दुर्व्यवहार मत कीजिये, प्लीज