रोशनी आये
रोशनी आये
भले ही कहीं से भी
मगर वो आये,
अंधेरे को हराने आये।
उसकी किरणें हों
इतनी तीखी सी
आवरण भेद कर
भीतर जहां हो मन
वहां पहुंचें,
मिटा दें सब अंधेरा।
और जितनी भी
लगी हो कालिख
उसे भी साफ कर
चमका दे हुस्न मेरा।
वो हुस्न भीतरी है
दिखता नहीं है बाहर
उसे तो रब ही देखता है,
वो सदा साफ रहे मेरा।
क्योंकि रब ही तो सब है
उसकी बाहर व भीतर
सब तरफ ही नजरें हैं
कहीं वो देख न ले
कालिमा मेरे मन की।
इसलिए रोशनी आये
व भीतर तक समाये
मिटा दे साफ कर दे
कालिमा मेरे मन की।
कवि सतीश जी की बहुत ही श्रेष्ठ रचना है ।नई रोशनी के आगमन से मन के सारे कष्ट दूर करने की बहुत सुन्दर पंक्तियां और अति सुंदर भाव । सुंदर शिल्प और खूबसूरत प्रस्तुति
वाह सर वाह, very very nice
वाह सर बहुत ही लाजवाब
वाह सर बहुत अच्छी रचना
।सुन्दर
शानदार लिखा है पाण्डेय जी