रोशनी तरफ की न खिंचते जा
मन मेरे! कीट सा पतंगे सा
इस तरह से अंधेरी रातों में
रोशनी तरफ की न खिंचते जा
झूठ के हाथ यूँ न बिकते जा।
ओ कलम! हाथ मेरे आकर
अब न रुक वेदना को कहते जा
जो कुछ हो पीड़ इस जमाने की
उसको कागज में खूब लिखते जा।
ओ कदम! डर न तू डराने से
सत्य की राह पग बढ़ाने से
विघ्न बाधाएं खूब आएं भले
मुड़ न पीछे तू आगे बढ़ते जा।
मन मेरे! रूठ जाए दुनिया ये
सबके सब मुँह चुरा के चलते बनें
तब भी विचलित न होना राही तू
अपने कर्मों पथ में चलते जा।
कमाल की काव्यधारा है पाण्डेय सर, क्या कहने
Very nice
“ओ कलम! हाथ मेरे आकर अब न रुक वेदना को कहते जा”
कवि के पास यही तो एक साधन होता है,जिससे वह अपने हृदय की वेदना और उल्लास को व्यक्त कर सकता है
बहुत सुंदर काव्य लाजवाब अभिव्यक्ति
अतिसुंदर भाव
बहुत ही अच्छा लिखा है सर
बहुत खूब, अति उत्तम
Very nice