रौशनी की आस
ज़िंदगी की तपिश बहुत हमने सही,
ये तपन अब खलने लगी।
रौशनी की सदा आस ही रही,
रौशनी की कमी अब खलने लगी।
बहुत चोटें लगीं, बहुत घाव सहे
सहते ही रहे कभी कुछ ना कहे,
वो घाव अब रिसने लगे,
मरहम की कमी सब खलने लगी।
औरों को दिए बहुत कहकहे,
अपने हिस्से तो .गम ही रहे।
ये .गम अब मेरे हिस्से बन चले,
.खुशियों की कमी अब खलने लगी।
रौशनी की सदा आस ही रही,
रौशनी की कमी अब .खलने लगी।
बहुत खूब
बहुत बहुत शुक्रिया 🙏
तपिश सहकर तू एक दिन कुन्दन बनेगी।
निराश न हो बहना सर्वन की कुण्डल बनेगी।।
बहुत खूब। अतिसुंदर।।
ह्रदय की गहराइयों से आपका आभार और धन्यवाद भाई जी🙏
सुन्दर रचना
बहुत बात शुक्रिया आपका🙏
वाओ
Thank you very much Kamla Ji 🙏
Waah waah
Thank you very much Piyush ji 🙏