लिख दे ना
जो हो रहा है घटित
अपने चारों तरफ
उसे बयान कर दे ना
मेरी कलम! लिख दे ना।
जी रहे घर बिना
लिबास बिना,
ठंड में ओढ़नी बिना सोते
ऐसे जीवन लिए
कुछ कर दे ना,
उस दर्द को उठाने को
मेरे मन! लिख दे ना।
भूख है और खड़ी बेकारी
उनकी आवाज को
उठा दे ना
वो कलम लिख दे ना।
जो है वो कह दे ना,
मेरी कलम! लिख दे ना।
लेखनी को सम्बोधित करती हुई मानवीकरण का प्रयोग करके अपने मन के भाव व्यक्त करती हुई कविता
Very nice poem
असहायों की सहायता करने को तत्पर , कवि की बहुत सुन्दर रचना
बहुत