लेखनी को दूषित करते हैं
बड़ी बात करते हैं लोग
पर बड़ा ह्रदय ना रखते हैं
कुछ अभिलाषा मन में जागे तो
फिर कुबड़ाई करते हैं
लेखनी को दूषित करते हैं
अपनी कुत्सित सोंच से
दूसरे की ना सुनते बस
अपनी ही कहते रहते हैं
बड़ी बात करते हैं लोग
पर बड़ा ह्रदय ना रखते हैं
कुछ अभिलाषा मन में जागे तो
फिर कुबड़ाई करते हैं
लेखनी को दूषित करते हैं
अपनी कुत्सित सोंच से
दूसरे की ना सुनते बस
अपनी ही कहते रहते हैं
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आप कवि हैं अपना फीडबैक दे सकते हैं यह आपका ही मंच है पर किसी भी प्रकार से मुझे असुविधा नहीं होनी चाहिए मुझे बीच में घसीटने पर मैं मान हानि भी लगा सकती हूं..
कृपया मेरे नां का दोबारा जिक्र ना करें वरना मेरा दिमाग….
मैं एक रेडियो जॉकी हूं, साथ ही कवि भी मुझे सावन पर लिखना इसलिए पसंद है, क्योंकि अमर उजाला कि तरह यहां कविता भेजनी नहीं पड़तीं ना ही योरकोट की तरह फोटो पर लिखनी होती हैं जिसमें असुविधा होती है यदि कविता बड़ी होतो फान्ट छोटे हो जाते हैं
दूसरी बात मैंने अभी तक १२००+ कविताएं सावन पर लिखीं हैं तो मैं अपने साहित्य को एक ही जगह व्यवस्थित रखना चाहती हूं…
वरना इतनी अनर्गल वार्तालाप के बाद मैं इस मंच को समय ही ना देती
बहुत खूब