लो फिर आ गई है सर्दी
लो फिर आ गई है सर्दी
पूरे लाव -लश्कर के साथ में।
हवा भी ठण्ढी सूरज मद्धिम
घना कुहासा दिन और रात में।।
बिन बादल के बारिश जैसी
गीलापन हर डाल -डाल व पात में।
आठ नहीं हैं बजे अभी
कम्बल में दुबके हैं सभी
जैसे कर्फ्यू लग गई हो हर रात में ।।
शबनम की बूंदें मोती जैसे
तरुपल्लव और कुसुम कली पर।
चम-चम चमक रहे हैं ऐसे
टिमटिम धवल सितारे से नीलाम्बर।।
दुबले भी मोटे दिखते हैं
चढ़ा गरम कपड़े निज गात में।
‘विनयचंद ‘ इस सर्दी का तू
कर स्वागत जज़्बात में।।
सर्दियों पर बहुत सुंदर कविता है भाई जी ।सर्दियों का यथार्थ चित्रण
शुक्रिया बहिन
बहुत ही सुन्दर
बहुत ही उम्दा
सुंदर सटीक भाषाभिव्यक्ति