वक़्त
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दामन-ए-वक़्त में हर ग़म को छुपाना होगा।
वरना तमाम उम्र यूँ ही अश्क़ बहाना होगा।।
जहान में कौन अज़ल तक रहा सलामत है।
आख़िर सभी को दुनियाँ छोड़ के जाना होगा।।
ख्वाहिश-ए-सुबू किस का हुआ लबरेज़ यहाँ।
बाद मरने के तो ख़लाओं में ठिकाना होगा।।
ख़ुद की परछायी पे आइनों को रश्क करने दो।
बिखरते ख़्वाबों को हक़ीकत तो बनाना होगा।।
दामन-ए-वक़्त में हर ग़म को छुपाना होगा।
वरना तमाम उम्र यूँ ही अश्क़ बहाना होगा।।
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@deovrat 25.09.2019
अगरचे=बहरहाल, यद्यपि, हालाँकि
ख्वाहिश=ए-सुबू – इच्छाओं का घड़ा
ख़ला = शून्य
रश्क=ईर्ष्या
Wah kya khub
शुक्रिया निमीषा
Very nice
Thanks ji
Nice
Thank you so much
वाह
जी धन्यवाद
Good
Thanks
Wah
जी शुक्रिया
वाह
bahut bahut dhanywad Gupta ji