वक्त मत हाथ से जाने देना
वक्त मत हाथ से जाने देना
वक्त को खूब भुना लेना तुम
कभी आलस अगर आना चाहे
उसको तुम पास मत आने देना।
वक्त जब हाथ से निकल लेगा
तब नहीं लौट कर वो आयेगा
खर्च कितना भी करो
धन लुटा लो
मगर वो बीत चुका वक्त
नहीं आयेगा।
याद वो बालपन करो अब तुम
क्या दुबारा बुला सकोगे उसे,
क्या फिर खेल सकोगे माटी में
क्या फिर से लिख सकोगे पाटी में।
वक्त जो है उसी में खुश होकर
जिंदगी जियो यूँ हल्के में
बोझ सब दूर कर लो मन के तुम
रास्ते छोड़ दो अब गम के तुम।
अत्यंत लाजवाब है सर
“याद वो बालपन करो अब तुम क्या दुबारा बुला सकोगे उसे,”
वक्त पर आधारित कवि सतीश जी की बहुत ही सुन्दर और सच्ची अभिव्यक्ति । वक्त हाथ से निकल गया तो वापिस नहीं आता है । अति उत्तम प्रस्तुति
बहुत खूब