वतन की खातिर
जिस वतन का खाना खाते हो,
डाल के अपनी थाली में
आज उसी वतन के हित की खातिर,
उसी वतन की मिट्टी के, दीए जलाना
अबकी बार दिवाली में
चीन की लड़ियां नहीं जलाना,
सरहद पर बैठा, सैनिक जल जाएगा
तड़प कर रो उठेगी वो मां कहीं,
जिसके लाल के खून से, लाल हुई थी जमीं
जिसके लाल की जान छीनी,
सरहद पर जा कर पूछो,
वो था एक बैरी चीनी
*****✍️गीता
बेहतरीन रचना
कविता की सराहना के लिए आपका बहुत धन्यवाद ऋषि जी
अतिसुंदर भाव
सादर आभार भाई जी 🙏
बहुत ख़ूब, देश भक्ति की भावना को बहुत ही सुन्दर तरीके से प्रस्तुत किया है । वन्दे मातरम्
Bilkuk di