वही दिल जुड़ाता है
वही दिल जुड़ाता है
करीब लाता है,
फिर वही इस तरह से
दूरियां बढ़ाता है।
वो रब हमें इस तरह
खेल ही खेल में
कभी मिलाता है
कभी गम बढ़ाता है।
हम तो बस चाहते ही रहते हैं
हाथ में हाथ रख
साथ ही साथ रह
नेह की चाह दिल मे रखते हैं।
मगर वो रब का
निराला न्याय है
या किसी प्रेमी दिल हाय है
चाह कर भी नहीं
करीब रहते हैं
बात तो करते हैं
दिल से अजीब रहते हैं।
सुंदर लेखन..
शानदार रचना
अति उत्तम प्रस्तुति
अतिसुंदर भाव