वही सागर का तट
वही सागर का तट
बालुकामय सतह।
जहाँ आनन्द मनाया
कुछ इस तरह।।
खाया -खेला
नाचा-गया।
गीले बालुका पर
अंगूठा घुमाया।
कुछ इस तरह।।
अंकित हुआ
बीस सौ बीस।
कितने दुखो के
भरे हैं टीश।।
सागर के लहरों ने
मिटा दिया वो अंकन।
पर दिल में एक
अधूरी यादों का है कंपन।।
शायद लिखा हुआ होगा
अब तक ज्यों का त्यों।
चल पड़े आज फिर
उसी ओर आखिर क्यों।।
शायद कुछ खोजने
और करने मन को हल्का।
वही अधूरी यादे
अंकित बीस बीस हल्का।।
समझ न पाया क्या था
हकीकत या फिर मन का टीश।
होकर आदत के वशीभूत
लिख डला बीस सौ एकीश।
ठीक उसी तरह
जैसे पृष्ठ पलट रहा हो कैलेंडर का।
‘विनयचंद ‘ ने भी लिख डाला
अपने मन के अन्दर का।।
अनुपम ।
Bahut Sundar. Apratim Rachna.
धन्यवाद
धन्यवाद
धन्यवाद धन्यवाद
वही सागर का तट
बालुकामय सतह।
जहाँ आनन्द मनाया
कुछ इस तरह।।
खाया -खेला’
— बहुत सुंदर रचना, अति उत्तम अभिव्यक्ति
बहुत बहुत धन्यवाद पाण्डेयजी
अति उत्तम
धन्यवाद
अति उत्तम रचना
धन्यवाद
Nice
धन्यवाद
“सागर के लहरों नेमिटा दिया वो अंकन।
पर दिल में एकअधूरी यादों का है कंपन।’
चित्र के अनुरूप बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है, बीते वर्ष और आने वाले वर्ष के ऊपर बहुत सुंदर रचना लाजवाब अभिव्यक्ति
बहुत बहुत शुक्रिया बहिन
Nice poetry panditji
धन्यवाद
Very nice
धन्यवाद
बहुत खूब पंडित जी
धन्यवाद
Bahut sundar
धन्यवाद धन्यवाद
Gajabbbbb
धन्यवाद
Good poem
धन्यवाद
Man ko Santi pardan karne wala kavy Ras
शुक्रिया जनाब
बहुत ही सुंदर
बहुत ही सुंदर
धन्यवाद धन्यवाद
Nice Pandit Ji
धन्यवाद
Nice Lines Pandit ji
धन्यवाद धन्यवाद
Best poem ..
Bahut khoob💐💐💐
धन्यवाद
Adbhut rachna
धन्यवाद
बहुत लाजवाब अभिव्यक्ति, सुंदर लेखन
बहुत बहुत शुक्रिया
Atisunder kavita
धन्यवाद धन्यवाद
धन्यवाद