वह एक मज़दूर है
भवन बनाए आलीशान,
फ़िर भी उसके रहने को
नहीं है उसका एक मकान।
झोपड़पट्टी में रहने को मजबूर है
हाँ, वह एक मज़दूर है।
मेहनत करता है दिन रात,
फ़िर भी खाली उसके हाथ।
रूखी- सूखी खाकर वह तो,
रोज काम पर जाता है।
किसी और का सदन बनाता,
निज घर से वह दूर है,
हाँ, वह एक मज़दूर है।
सर्दी गर्मी या बरसात,
चलते रहते उसके हाथ।
जीवन उसका बहुत कठिन है,
कहता है किस्मत उसकी क्रूर है।
हाँ, वह एक मज़दूर है।।
_____✍️गीता
हाँ, वह एक मज़दूर है।
मेहनत करता है दिन रात,
फ़िर भी खाली उसके हाथ।
मजदूर की व्यथा की बहुत सुंदर प्रस्तुतीकरण
धन्यवाद सर 🙏
Bahut hi khubsurat Rachana, mujhe bahut acchi lagi
बहुत-बहुत धन्यवाद सर 🙏
बहुत खूब
सादर धन्यवाद भाई जी 🙏
भवन बनाए आलीशान,
फ़िर भी उसके रहने को
नहीं है उसका एक मकान।
झोपड़पट्टी में रहने को मजबूर है
——- बहुत खूब, अति उत्तम रचना।
समीक्षा हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी
Nice
धन्यवाद