वादियों में गूंजती आवाज़

वादियों में गूंजती आवाज़ लौट सकती है
घटाओं में छुपी बिजलियाँ कौंध सकती है
ना ले मेरी खामोशियों का इम्तेहान इस कदर,
मेरी ख़ामोशी तेरे लफ़्ज़ों को रौंद सकती है
राजेश’अरमान’

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