वृद्धाश्रम में छोड़कर बूढ़े पिता को

वृद्धाश्रम में छोड़कर बूढ़े पिता को
लौट आया घर, जरा सा चैन पाया
मुस्का रही अर्धांगिनी ने जल पिलाया
आज उसकी रुचि भरा भोजन बनाया।
बोली बड़ी आफत हुई है दूर हमसे
खांसी की आवाजों से छुटकारा मिलेगा
चाय देने को उठो पानी पिलाओ
इन सभी बातों से छुटकारा मिलेगा।
ज्यों ही बैठे, भोजन को परोसा
बारह बरस का पुत्र बोला बाप से
क्या सभी जाते हैं वृद्धा आश्रम में
जब वो बन जाते हैं दादा जी किसी के,
एक दिन क्या आप भी वृद्धाश्रम में,
रहने लगोगे आप जब दादा बनोगे।
चोट खाकर पुत्र की इस बात से
दो कौर भोजन के नहीं खा पाया वो,
आक़िबत का आईना अपना दिखा जब,
पुत्र से कुछ भी नहीं कह पाया वो।

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Responses

  1. जो लोग अपने बूढ़े माता पिता के साथ दुर्व्यवहार करते हैं, उन्हें आइना दिखती हुई बहुत सुन्दर कविता और उसकी शानदार प्रस्तुति ।
    समाज में ऐसी कविताएं आनी चाहिए ,आपकी लेखनी की विलक्षण प्रतिभा को प्रणाम ।

    1. इतनी सुंदर समीक्षा की है आपने, धन्यवाद को शब्द कम पड़ जाते हैं। आपके द्वारा सदैव ही उत्साहवर्धन किया जाता है। आपको सादर अभिवादन।

  2. सचमुच किसी के प्रति उपेक्षा का भाव रखकर अपने जीवन में किसी से अपेक्षा रखना असफल प्रयास माना जाता है।
    अतिसुंदर रचना

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