वो तेरे जीवन की परी (भाग 1)

प्रभु ने कहा , नन्हे फ़रिश्ते से,
तुम्हे धरा पर जाना होगा
मानव रूप मिलेगा तुमको
इस धरा को स्वर्ग सा सुंदर बनाना होगा
नन्हा फरिश्ता पूछे प्रभु से,
उस दुनियां में कैसे रह पाऊंगा,
इतना छोटा बना के भेज रहे हो प्रभु
मैं अपने भी काम कैसे कर पाऊंगा ?
प्रभु मुस्काए, बोले ..चिंता ना कर
धरा पर जाने से बिल्कुल ना डर
तेरे लिए वहां , तेरी एक परी होगी
जो तेरे लिए, तेरी इक मुस्कान के लिए खड़ी होगी
लेकिन प्रभु , वहां तो और भी पारियां होंगी !
मै कैसे अपनी परी को पहचानूंगा ,
कैसे में उसको जानूंगा……
प्रभु बोले, ये तो है बहुत आसां ,
वो दौड़ के आएगी, बस एक बार कहना मां
तू उसको ना जाना कभी छोड़ के ,
तेरे मां कहते ही , वो आएगी दौड़ के
बचपन से लेकर जवानी तक
हर गीत से लेकर कहानी तक,
वो तेरी सेवा में खड़ी होगी
तू एक मुराद मांग कर तो देखना,
पूरी करने को, सारी दुनियां से लड़ी होगी ।
फरिश्ता फिर मुस्कुरा के बोला….
जैसी आप की इच्छा प्रभु….
फरिश्ता धरा पर आया, मां के रूप में सचमुच एक परी को पाया
20-25 साल बड़े आराम से निकले,
फ़िर साहबजादे कुछ कमाने को घर से निकले….
………फिर क्या हुआ ,अगले भाग में पढ़ें…..✍️गीता..

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Responses

  1. वाह क्या बात है,
    “फरिश्ता धरा पर आया, मां के रूप में सचमुच एक परी को पाया”
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। आपकी प्रखर लेखनी को सैल्यूट। जो भी लिखती हैं जबरदस्त लिखती हैं।

    1. आपकी सुंदर समीक्षा के लिए बहुत सारा धन्यवाद सतीश जी🙏
      मां अपने बच्चे के लिए एक परी ही होती है और प्रभु ने एक एक परी सबको दी है। अभिवादन .. आपकी प्रेरित करती हुई टिप्पणी का आभार

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