वो प्रीत कहाँ से लाऊं
जिन्दगी की सरगम पर
गीत क्या मैं गाऊँ
तुम्ही अब बता दो
वो प्रीत कहाँ से लाऊँ।
पतझङ सी वीरानी
छायी है जीवन में
ना कोई है ठिकाना
खुशी अटकी है अधर में
दो राहे पर खङी मैं
किस पथ पर मैं जाऊँ
तुम्हीं अब बता दो
वो प्रीत कहाँ से लाऊँ।
नज़र में जो छवि थी
कभी राधा मैं बनीं थीं
कान्हा की लगन मन में लगी थी
उसकी हंसी भी वैरन सी खङी थीं
विश्वास की डोर टूटी
दुनिया ही जैसे लूटी
झूठ के भँवर से कैसे निकल पाऊँ
तुम्हीं अब बता दो
वो प्रीत कहाँ से लाऊँ।
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Satish Pandey - December 25, 2020, 11:15 pm
“झूठ के भँवर से कैसे निकल पाऊँ
तुम्हीं अब बता दो
वो प्रीत कहाँ से लाऊँ।”
उच्चस्तरीय पंक्तियाँ, उम्दा कवित्व, लाजवाब कविता।
Suman Kumari - December 26, 2020, 7:59 pm
बहुत बहुत धन्यवाद
Sandeep Kala - December 26, 2020, 7:10 am
very nice
Suman Kumari - December 26, 2020, 8:00 pm
बहुत बहुत धन्यवाद
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - December 26, 2020, 8:12 am
बहुत खूब
Suman Kumari - December 26, 2020, 8:00 pm
बहुत बहुत धन्यवाद धन्यवाद
Geeta kumari - December 26, 2020, 12:07 pm
Nice lines
Suman Kumari - December 26, 2020, 8:01 pm
बहुत बहुत धन्यवाद
Rishi Kumar - December 26, 2020, 7:09 pm
Very good
Suman Kumari - December 26, 2020, 8:01 pm
बहुत बहुत धन्यवाद
Pragya Shukla - December 27, 2020, 7:30 pm
जिन्दगी की सरगम पर
गीत क्या मैं गाऊँ
तुम्ही अब बता दो
वो प्रीत कहाँ से लाऊँ।
पतझङ सी वीरानी
छायी है जीवन में
उत्तम लेखन व भाव प्रगढ़ता के साथ उम्दा शिल्प