वो मासूम कली
छोटी सी मासूम कली थी,
अपने घर में, मां की गोद में
बड़े लाडों से पली थी
मुस्कान के आगे जिसकी,
पूरा घर था खिल गया
उसको शर्म सार करके,
किसी को क्या मिल गया
जीने भी ना दिया गया,
वो कितना रोई होगी,
उसकी मां से पूछ के देखो,
वो कैसे सोई होगी
कलेजा फट जाता है सुनकर,
उसने कैसे सहा होगा
जीवन की भीख तो मांगी होगी,
आखिर कुछ तो कहा होगा
वो भी तो चाहती थी जीना,
आखिर क्यूं उसका जीवन छीना
ये चीख – चीख रूह बोल उठी,
तेरी भी पोल खुलेगी इक दिन
अत्याचारी तू पकड़ा जाएगा,
जंजीरों में जकड़ेंगे तुझे
तू भी ना बख्शा जाएगा
कानून को इतना सख्त बना दो तुम,
कि दहशत फैले दरिंदों में
वरना ये दानव यूं ही आएंगे,
फ़िर एक और कहानी दोहराएंगे ।
कानून को सख्त तो करना ही होगा,
हम सब मिलकर ये मुहिम चलाएंगे ।
सच्ची, मार्मिक और यथार्थ अभिव्यक्ति है।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद जोशी जी सादर आभार🙏
बहुत ही मार्मिक भाव
सादर धन्यवाद आपका भाई जी 🙏 बहुत बहुत आभार ।
अत्यंत गहरी भावाभिव्यंजना, पीड़िता के दुःख को बहुत ही सहज स्वरूप में प्रस्तुत किया है। मार्मिक भाव को इस तरह सामने लाया गया है कि आंखें भर जाएं। गला रुँध जाये। लेखनी को प्रणाम
इतनी सुन्दर समीक्षा हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
सच में ऐसी घटनाएं व्यथित कर देती हैं । बस हृदय के भाव ही प्रकट हो गए ।लेखन की सराहना के लिए आपका आभार ।
बहुत खूब, वाह, वाह
सादर धन्यवाद आपका कमला जी🙏
सुन्दर अभिव्यक्ति