शराब एक अभिशाप
देखो, कैसा यह जमाना आया है,
सांझ जैसे बीती,
सुरालय की चौखट पर लाइन लगाया है।
कैसा यह जमाना आया है।।
दिन भर के खून पसीने से,
जितना पैसा कमाया है,
घर बार छोड़ सारी पूंजी,
उस मदिरा पर लुटाया है।
कैसा यह जमाना आया है।।
बीवी बच्चे हो रहे रोटी को मोहताज,
घर की इज्जत नीलाम हो रही,
इन्हें तनिक न आती लाज,
खुद तो पीते और झूमते,
इस शराब की बोतल ने बच्चों पर,
भूखे रहने का कहर बरसाया है,
इस मदिरा के चक्कर ने, राजा को रंक बनाया है।
कैसा यह जमाना आया है,
कैसा यह जमाना आया है??
समाज की कुरीति पर प्रहार करती
सुंदर कविता
आपकी कविता में एक सार है एक पूर्णता समाहित है। जीवन से जुड़ी पीड़ा की आपने बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति की है। शब्दों और वाक्यों में बहुत शुद्धता है। बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
आपका धन्यवाद
अतिसुंदर रचना
बहुत सुंदर प्रस्तुति
शराब एक अभिशाप् यथार्थ चित्रण
बहुत खूब, वाह
आपका सादर अभिनन्दन
👌👌🙏🙏
सुन्दर प्रस्तुति
सुंदर भाव
Very nice poem 🙏
Bht khub
दिन भर के खून पसीने से,
जितना पैसा कमाया है,
घर बार छोड़ सारी पूंजी,
उस मदिरा पर लुटाया है।