शिकवों के पुलिंदे….
यादों के पंख फैलाकर
सुनहरी रात है आई
उन्हें भी प्यार है हमसे
सुनने में ये बात है आई
पैर धरती पे ना लगते
उड़ गई आसमां में मैं
जीते जी प्रज्ञा’ देखो
स्वर्ग में भी घूम है आई .
चाँद पर है घटा छाई
गालों पर लट जो लटक आई…
सजती ही रही सजनी
सजन की प्रीत जो पाई
मिलन की आग में देखो
जल गये शिकवों के पुलिंदे,
पीकर नजरों के प्याले
प्रज्ञा बन गई मीराबाई…
वाह, बहुत खूब |
बहुत खूब लाजवाब अभिव्यक्ति
Thanks
बहुत खूब
Thanks
वाह ।आप मीराबाई भी बन जाती है।
Thanks sir
बहुत सुंदर
Tq
उम्दा अभिव्यक्ति
धन्यवाद