शेषनाग पर सोते हैं….

ना सोचा था हमने कभी भी
ऐसे दिन में आएंगे
घर में बैठकर तोडेंगे रोटी
कमाने कहीं ना जाएंगे
होंगे इतने आराम पसंद
दरवाजे पर ही सब्जी लेंगे
जो बन जाएगा वह खा लेंगे
दिन में भी खर्राटे लेंगे
फोन उठाने में भी आलस
हमको अब आ जाएगा
लेटे-लेटे कमर दुखेगी
बिजली का बिल बढ़ जाएगा
लॉकडाउन ने हमें सिखाया
एक दिन में कितने सेकंड होते हैं
घर की महिलाएं काम करें और हम
विष्णु जी के जैसे शेषनाग पर सोते हैं।।
बहुत सुंदर
Thanks
Nice यथार्थ
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका
बहुत खूब
Thanks
यथार्थ चित्रण
बहुत सुंदर चित्रण